Sunday, 17 July 2016

Singapur n us

#LessonsFromLee
ली कुआन यु की पुस्तक पढ़ते हुए कुछ बातें साफ़ समझ आ रही हैं - क्या गलत हो रहा है, दिखाई दे रहा है.
      ली ने एक छोटे से देश में, एक मिश्रित समाज में राष्ट्रीयता का निर्माण किया. उसकी समस्याओं और चुनौतियों का स्केल चाहे भारत के इतना बड़ा नहीं था, लेकिन चुनौतियों का नेचर वही था जो हमारे लिए है.
    हमारी ही तरह सिंगापुर अंग्रेजी उपनिवेशवाद से निकल रहा एक देश था. गरीबी, अशिक्षा, गन्दगी, भ्रष्टाचार जैसी कमजोरियाँ एक मिहनती, सहृदय सीधे सादे समाज को वैसे ही बर्बाद कर रही थीं जैसे हमारे यहाँ. कम्युनिष्टों का प्रकोप हमारे यहाँ से कहीं भयानक ही था. और विदेशी मीडिया और विदेशी ताकतों द्वारा छेड़ छाड़ बिलकुल ऐसी ही थी जैसी आज हमारे यहाँ है.
     उसके बीच ली ने जो रास्ता अपनाया वह हमारे आज के रास्ते से कैसे अलग है, और हम कौन सी गलतियाँ कर रहे हैं?
    सिंगापुर की आर्थिक प्रगति में जो बड़ी बाधा थी, वह था वहां का ट्रेड यूनियन आंदोलन. वहां की राष्ट्रीय एकता और बौद्धिक प्रगति में जो सबसे बड़ी बाधा थी, वह था वहां का कम्युनिष्ट आंदोलन जो चीन जैसे ताक़तवर शत्रु के प्रभाव में था. और तीसरी सबसे बड़ी समस्या थी वहां के मानस पर अंग्रेजी मीडिया का जहरीला प्रभाव, जो अमेरिका द्वारा सिंगापुर में अस्थिरता फैलाने के लिए प्रयोग किया जाता था....क्योंकि अमेरिका किसी की तरक्की बर्दाश्त कर नहीं सकता...
            इन तीनों से निबटने के ली के तरीके में एक ख़ास बात थी - जीरो टॉलरेंस. उसने इन सबके प्रति जरा भी नरमी नहीं दिखाई. सारे कम्युनिष्ट देशद्रोहियों ने पूरी जिंदगी या तो जेल में बिताई, या चीन भाग गए. देशद्रोह से अपराध की तरह निबटा, ना कि एक वैचारिक मतभेद की तरह. अगली पीढ़ी तक वामपंथ के इस जहरीले नशे की लपट पहुँचने भी नहीं दी. उन्हें सिर्फ हराया नहीं, कुचल दिया. ट्रेड यूनियनों को हड़ताल करने की छूट नहीं दी. किसी भी गैरजरूरी, बेहूदा और राजनीति से प्रेरित हड़ताल पर उसके नेताओं को जेल में डाल दिया और हड़तालियों को नौकरी से निकाल दिया.
      पर सबसे कड़ाई से निबटा वहाँ की प्रेस्टीट्यूट मीडिया से. मीडिया पर अपनी रिपोर्ट की सच्चाई सत्यापित करने की जिम्मेदारी डाल दी. गलत रिपोर्टिंग पर सख्त कार्रवाई की, अखबारों का लाइसेंस रद्द कर दिया, गलत रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों को कोर्ट में घसीटा, भारी जुर्माना वसूला. उसपर ऊल जलूल आरोप लगाने वाले सारे विरोधी कम्युनिष्टों और पत्रकारों से इतना हर्जाना वसूला कि ज्यादातर दिवालिये हो गए. बहुत से हमेशा के लिए विदेश भाग गए. हर गलत आरोप और गलत रिपोर्टिंग को चुनौती ही नहीं दी, उनकी नाक रगड़ कर, कुचल कर छोड़ा. अगर किसी भी अखबार, व्यक्ति या प्रचार के पीछे विदेशी पैसे की भनक भी मिल गयी तो उसे बर्बाद करके ही छोड़ा. ऐसी स्थिति बना दी कि आप गलत आरोप लगा कर, झूठ फैला कर बच नहीं सकते हो...इतने सारे उदाहरण हैं, कि एक एक घटना शेयर करने का मन करता है, पूरी किताब अनुवाद करके शेयर करने की इच्छा होती है.
       सोचता हूँ, ये केजरीवाल, बरखा, सागरिका और राजदीप जैसे देशद्रोही अगर ली कुआन यु के सामने पड़े होते तो वह उनसे कैसे निबटा होता? जिन लोगों की जगह जेल में है, वे राज्य के मुख्यमंत्री बने बैठे हैं...प्राइम टाइम पर जहर फैला रहे हैं...आतंकियों का समर्थन और बचाव कर रहे हैं....
      यह नहीं चल सकता. देश ऐसे नहीं चलते...राष्ट्र ऐसे नहीं बनते. आप घर में सांप पाल कर चैन से नहीं सो सकते. साँप का सर कुचलना हो होगा. लाठी आपके हाथ में है. और लंबी, और मोटी लाठी चाहिए तो जनता से मांगिये, जनता देगी. पर लाठी साँपों पर चलती दिखाई देनी चाहिए...आप तो बीन बजाते दिखाई दे रहे हैं....

No comments:

Post a Comment